Friday, November 14, 2025

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (UP Revenue Code, 2006)

 UP LAND LAW : UTTAR PRADESH REVENUE CODE, 2006 - in Hindi


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Uttar Pradesh Revenue Code, 2006

UP LAND LAW: UTTAR PRADESH REVENUE CODE, 2006

PART-1

परिचय (Introduction)

उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 (UP Revenue Code, 2006) भूमि राजस्व, अभिलेख, भू-प्रशासन, एवं भू-अधिकारों से सम्बन्धित सभी कानूनों को एकीकृत करता है। इसका उद्देश्य है

  • भूमि राजस्व वसूली को सरल बनाना,
  • भूमि अभिलेखों को आधुनिक और सटीक रखना,
  • भू-धारकों और कृषकों के अधिकारों की रक्षा करना,
  • विवाद समाधान की प्रक्रिया को तेज करना।

इतिहास (History)

स्वतंत्रता से पहले: भूमि प्रबंधन ज़मींदारी, रैयतवारी और महालवारी प्रणालियों के अधीन था।
स्वतंत्रता के बाद: 1950 में ज़मींदारी उन्मूलन, भूमि सुधार, और कई नई भूमि संबंधी विधियाँ लागू हुईं।
सन् 2006: उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता लागू हुई, जिसने सभी पुराने राजस्व कानूनों को एकीकृत कर दिया।
2006 के बाद: डिजिटल भूमि अभिलेख, -गवर्नेंस, ऑनलाइन खतौनी आदि पहलें लागू हुईं।


उत्तर प्रदेश का राजस्व क्षेत्रों में विभाजन (Division and Constitution of Revenue Areas)

भूमिका

राजस्व प्रशासन की प्रभावी व्यवस्था, रिकॉर्ड रखने और कर वसूली के लिए उत्तर प्रदेश को विभिन्न राजस्व क्षेत्रों में बाँटा गया है। ये क्षेत्र राज्य के भूमि प्रशासन की आधारभूत इकाइयाँ हैं।


1. संवैधानिक आधार (Constitutional Basis)

(1) राज्य सूचीसातवीं अनुसूची

Entry 49: भूमि एवं भवनों पर कर लगाने का अधिकार
Entry 18: भूमि, भू-अधिकार, भूस्वामी-किरायेदार संबंध, भूमि अंतरण, भूमि अभिलेख आदि पर कानून बनाने का अधिकार

(2) अनुच्छेद 246(3)

राज्य सरकार को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्ति देता हैभूमि राजस्व राज्य का विषय है।

(3) अनुच्छेद 245 और 246

राज्य सरकार भूमि एवं राजस्व प्रशासन से संबंधित कानून बना सकती हैइसी आधार पर UP Revenue Code, 2006 बनाया गया।


सार

UP Revenue Code, 2006 राज्य सरकार की संवैधानिक शक्तियों के अंतर्गत बनाया गया है, ताकि भूमि राजस्व प्रशासन सरल, संगठित और आधुनिक हो सके।


2. राजस्व क्षेत्रों का अर्थ (Meaning of Revenue Areas)

उत्तर प्रदेश को निम्नलिखित राजस्व इकाइयों में विभाजित किया गया है

  • डिवीजन (Division)
  • ज़िला (District)
  • तहसील/उप-जिला (Tehsil/Sub-division)
  • परगना/कानूनगो सर्किल (Pargana/Kanungo Circle)
  • गाँव/पटवारी सर्किल (Village/Patwari Circle)

3. राज्य को राजस्व क्षेत्रों में विभाजित करना

(a) डिवीजन (Commissioner's Division)

  • राज्य सरकार अधिसूचना के माध्यम से डिवीज़न बनाती है।
  • प्रत्येक डिवीज़न कई जिलों का समूह होता है।
  • इसका प्रमुख कमिश्नर होता है।
    उदाहरण: लखनऊ, मेरठ, वाराणसी डिवीजन।

(b) ज़िला (District)

  • हर डिवीज़न में एक या अधिक ज़िले होते हैं।
  • ज़िला कलेक्टर/जिलाधिकारी राजस्व प्रशासन का प्रमुख होता है।

(c) तहसील (Tehsil)

  • प्रत्येक ज़िले को कई तहसीलों में विभाजित किया जाता है।
  • उप-जिलाधिकारी/तहसीलदार इसका प्रमुख होता है।
  • यह भूमि अभिलेख, राजस्व वसूली, विवाद समाधान की मुख्य इकाई है।

(d) परगना (Pargana)

  • तहसीलें आगे परगना में विभाजित हो सकती हैं।
  • आज प्रशासनिक महत्त्व कम लेकिन राजस्व अभिलेखों में अभी भी मौजूद।

(e) गाँव (Mauza/Village)

  • सबसे छोटी राजस्व इकाई।
  • लेखपाल गाँव के अभिलेख रखता है।
  • ग्राम पंचायत स्थानीय प्रशासन चलाती है।


PART-2

सीमा एवं सीमा-चिन्ह (Boundary and Boundary Marks)

(UP Revenue Code, 2006 – Chapter IV, Sections 20–28)

भूमि प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण भाग हैभूमि की सही सीमा का निर्धारण और उसका भौतिक चिन्हांकन
अक्सर सीमाओं की अस्पष्टता के कारण ही पड़ोसी कृषकों, गाँवों और भूमि-धारकों में विवाद उत्पन्न होते हैं।

इन्हीं समस्याओं को रोकने हेतु उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 20 से 28 में एक विस्तृत व्यवस्था की गई है।


1. परिचय

सीमा एवं सीमा-चिन्हों से संबंधित प्रावधानों का उद्देश्य है

  • भूमि की कानूनी सीमा (Legal Boundary) और वास्तविक सीमा (Physical Boundary) में एकरूपता सुनिश्चित करना
  • सीमा-चिन्हों की मरम्मत संधारण की जिम्मेदारी तय करना
  • सीमा विवादों का त्वरित (summary) समाधान उपलब्ध कराना

2. सीमाओं का निर्धारण एवं चिन्हांकनधारा 20

(1) गांव एवं प्लॉटों की सीमाएँ कैसे तय होंगी?

कानून के अनुसार:

  • हर गाँव की सीमा तथा
  • गाँव के भीतर हर गाटा/प्लॉट (Survey Number) की सीमा
    सीमा-चिन्हों (Boundary Marks) द्वारा निर्धारित और चिन्हित की जाएगी।

(2) सीमा-चिन्ह कैसे होंगे?

  • चिन्हों का प्रकार, आकार और निर्माण-प्रणाली नियमों द्वारा निर्धारित होती है।
  • आमतौर पर ये स्थायी चिन्ह होते हैं जैसे
    • पत्थर के गट्टे
    • सीमेंट के खंभे
    • RCC पिलर

महत्व

  • अवैध कब्जे की रोकथाम
  • भूमि सुधार और समेकन कार्यों में सहायक
  • स्वामित्व अधिकार सुरक्षित
  • विवाद कम होने से न्यायालय का बोझ घटता है

3. सीमा-चिन्हों का संधारण, मरम्मत एवं पुनर्निमाण (Sections 21–23)

(a) धारा 21 — रख-रखाव की जिम्मेदारी

कानून के अनुसार:

  • हर भूरिधर/कृषक (Tenure-holder) अपने खेत/होल्डिंग के भीतर बने सीमा-चिन्हों की
    • रख-रखाव,
    • मरम्मत,
    • पुनर्निर्माण
      अपने खर्चे पर करेगा।
  • ग्राम पंचायत उन सीमा-चिन्हों की रख-रखाव करेगी जो
    • गांव की सीमा पर हों,
    • किसी एक व्यक्ति के खेत के भीतर हों।

(b) धारा 22 — सीमा-चिन्ह का नष्ट, हटाया या क्षतिग्रस्त होना

यदि कोई सीमा-चिन्ह

  • नष्ट हो जाए,
  • क्षतिग्रस्त हो जाए,
  • कोई व्यक्ति उसे हटाकर बदल दे,

तो लेखपाल इसकी रिपोर्ट नायब-तहसीलदार को देगा, और नायब-तहसीलदार इसकी जांच करेगा।

(c) धारा 23 — सीमा-चिन्ह बनवाने का आदेश

यदि चिन्ह

  • गिर गया हो,
  • गायब हो,
  • खराब हो गया हो,

तो उप-जिलाधिकारी (SDO) आदेश देगा कि

  • संबंधित भूरिधर, या
  • ग्राम पंचायत

निर्धारित समय में चिन्ह को पुनः स्थापित करें।

अगर वे पालन नहीं करते, तो

  • सरकारी विभाग चिन्ह बनवाएगा
  • खर्च संबंधित व्यक्ति से बकाया राजस्व की तरह वसूल किया जाएगा।

(d) सीमा-चिन्ह को नष्ट करने पर दंड

  • तहसीलदार दोषी व्यक्ति पर ₹1,000 प्रति सीमा-चिन्ह तक जुर्माना लगा सकता है।
  • यह दंड फिर भी IPC की कार्रवाई (धारा 425, 441) को नहीं रोकता।

4. दंड एवं कानूनी परिणाम (Penalty & Legal Consequences)

सजा के प्रावधान

  1. प्रशासनिक दंड: पुनर्निर्माण का खर्च + जुर्माना
  2. फौजदारी दंड: यदि कार्य जानबूझकर किया गया है, तो IPC के तहत अपराध
  3. राजस्व वसूली: खर्च बकाया राजस्व के रूप में वसूला जाएगा

उदाहरण

अगर कोई किसान सीमा-खंभा हटाकर अपने खेत का आकार बढ़ाता है

  • उस पर जुर्माना
  • उसका खेत फिर से सीमांकन होकर ठीक किया जाएगा
  • संभव है कि IPC के तहत मामला भी दर्ज हो

5. सीमा विवादों का निपटानधारा 24

यह धारा summary procedure प्रदान करती है, यानी तेज़ और सरल समाधान

(a) कौन शिकायत करेगा?

  • कोई भी संबंधित पक्ष आवेदन दे सकता है
  • SDO स्वयं भी कार्रवाई कर सकता है (suo motu)

(b) SDO कैसे निर्णय लेगा?

निर्णय क्रम इस प्रकार:

1. मूल सर्वेक्षण मानचित्र (Survey Map)

यदि मानचित्र स्पष्ट है, उसी के आधार पर निर्णय होगा।

2. समेकन (Consolidation) के नए मानचित्र

यदि गाँव समेकन क्षेत्र में है, तो नवीनतम समेकन मानचित्र ही मान्य होंगे।

3. वास्तविक कब्जा (Actual Possession)

यदि मानचित्र अस्पष्ट हों, तो सीमा वही मानी जाएगी जहाँ वास्तविक कब्जा है।

4. गलत कब्जा (Wrongful Possession)

यदि किसी ने जबरन कब्जा किया है:

  • कब्जा वापस दिलाया जाएगा
  • सीमा उसी के आधार पर तय होगी

(c) समय सीमा

सीमा विवाद का निपटान 3 से 6 माह में होना चाहिए।

(d) अपील

  • SDO के आदेश के विरुद्ध 30 दिनों में कमिश्नर के पास अपील
  • कमिश्नर का आदेश अंतिम
  • सिविल न्यायालय का हस्तक्षेप वर्जित (Sec. 206)

6. महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय (Case Law)

(1) Anand Kumar Singh v. State of U.P. (2017)

धारा 24 पूरी व्यवस्था प्रदान करती है; सिविल कोर्ट का क्षेत्राधिकार नहीं।

(2) Mahendra Pratap Singh (2020)

यदि दोनों पक्ष मानचित्र को सही मानते हैं, तो SDO द्वारा किया गया सीमांकन अंतिम।

(3) Ram Kumar (2019)

मानचित्र होने पर वास्तविक कब्जा निर्णायक कारक होगा।


7. अन्य संबंधित प्रावधान (Sections 25–28)

  • Sec 25: रास्तों/ easements का निपटान
  • Sec 26: अवरोध हटाना
  • Sec 27: उच्च अधिकारियों की पुनरीक्षण शक्ति
  • Sec 28: सिविल अदालत का क्षेत्राधिकार निषिद्ध

निष्कर्ष (Conclusion)

UP Revenue Code, 2006 में सीमा-निर्धारण से जुड़ी व्यवस्था

  • सटीक सीमांकन,
  • समय पर मरम्मत,
  • दुरुपयोग पर दंड,
  • और त्वरित विवाद निपटान
    सुनिश्चित करती है कि भूमि अभिलेख सही रहे और ग्रामीण भूमि विवाद कम हों।


PART-3

गाँव अभिलेख (Village Records) एवं रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (RoR)

(UP Revenue Code, 2006 – Chapters VI & VII)

सही और अद्यतन भूमि अभिलेख (Land Records) गाँव के भूमि प्रशासन की रीढ़ होते हैं।
UP Revenue Code, 2006 इन अभिलेखों को

  • आधुनिक,
  • पारदर्शी,
  • त्रुटिरहित,
  • और विवाद-मुक्त
    बनाने के उद्देश्य से बनाया गया है।

यह भाग मुख्यतः धारा 33 से 46 तक फैला है।


1. रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (Record of Rights – RoR)

धारा 33 के अनुसार प्रत्येक गाँव के लिए रिकॉर्ड ऑफ राइट्स तैयार किया जाता है।

रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में क्या होता है?

धारा 33(2) के अनुसार RoR में निम्नलिखित प्रविष्टियाँ होंगी

  1. प्रत्येक भूमि-धारक (tenure-holder) का नाम
  2. भूमि का वर्ग, प्रकार और अधिकार
  3. प्लॉट का क्षेत्रफल और सीमा
  4. भू-राजस्व / किराया / सेस
  5. बंधक, easement या अन्य देयताएँ
  6. राजस्व नियमों में निर्दिष्ट अतिरिक्त विवरण

कानूनी प्रकृति (Legal Nature)

  • यह सरकारी अभिलेख है
  • इसे Tehsildar SDO की निगरानी में रखा जाता है
  • RoR की प्रविष्टियाँ सही मानी जाती हैं, जब तक कोई उन्हें गलत सिद्ध कर दे (धारा 34)

उपयोगिता

  • स्वामित्व कब्जे के निर्धारण में
  • विवादों के समाधान में
  • भू-राजस्व वसूली में
  • भूमि अंतरण (transfer) और बंधक (mortgage) में

2. म्यूटेशन (Mutation Proceedings)

म्यूटेशन = रिकॉर्ड में बदलाव (change of ownership/possession)

संबंधित प्रावधान:

धारा 35–38 (UP Revenue Code) एवं नियम 63–71 (Rules, 2016)

म्यूटेशन की प्रक्रिया (Step-by-Step)

(1) आवेदन – Sec. 35

जो व्यक्ति भूमि पर कोई नया अधिकार प्राप्त करे, उसे 6 महीने के भीतर तहसीलदार को सूचना देकर आवेदन देना होगा।
उदाहरण:

  • बिक्री (Sale)
  • उत्तराधिकार (Succession)
  • बंटवारा (Partition)
  • कोर्ट डिक्री

(2) नोटिस और जांच – Rule 64

तहसीलदार

  • पब्लिक नोटिस जारी करता है
  • संबंधित पक्षों से आपत्तियाँ मंगाता है

(3) सुनवाई – Sec. 36

आपत्ति होने पर राजस्व अधिकारी जांच करता है।
यदि कोई विवाद हो, तो बिना सुनवाई भी प्रविष्टि हो सकती है।

(4) आदेश और प्रविष्टि – Sec. 37

तहसीलदार आदेश देकर

  • राजस्व अभिलेख में प्रविष्टि करता है
  • प्रविष्टि को “attest” करता है

(5) सुधार और अपील – Sec. 38

गलती होने पर

  • संशोधन
  • या अपील संभव है

कानूनी प्रभाव

  • म्यूटेशन केवल फिस्कल (राजस्व) उद्देश्य पूरा करता है
  • यह स्वामित्व (title) नहीं देता
  • केवल कब्जे का प्रशासनिक प्रमाण माना जाता है

महत्वपूर्ण केस-लॉ

Balwant Singh v. Daulat Singh (SC, 1997)
म्यूटेशन का भूमि स्वामित्व पर कोई प्रभाव नहीं।

Ram Chandra (Allahabad HC, 2014)
म्यूटेशन केवल प्रशासनिक कार्य है।


3. सर्वेक्षण एवं रिकॉर्ड संचालन (Record and Survey Operations)

धारा 39–44

सर्वेक्षण का उद्देश्य

  • भूमि का सही मापन
  • वर्गीकरण
  • सीमा निर्धारण
  • नक्शे फील्ड-बुक तैयार करना

सर्वेक्षण की प्रक्रिया

(1) सर्वे की अधिसूचना – Sec. 39

कलेक्टर सार्वजनिक नोटिस जारी करता है कि गाँव का सर्वेक्षण होगा।

(2) मापन और वर्गीकरण – Sec. 40

  • प्रत्येक खेत का मापन
  • सीमा चिन्हांकन
  • भूमि का वर्गीकरण
    (उपजाऊ/अनुपजाऊ/सिंचित/असिंचित आदि)

(3) नक्शा तैयार करना – Sec. 41

गाँव का विस्तृत नक्शा और फील्ड-बुक तैयार की जाती है।

(4) विवादों का निपटान – Sec. 42

सर्वेक्षण के दौरान यदि सीमा या कब्जे को लेकर विवाद हो, तो राजस्व अधिकारी निर्णय करता है।

(5) प्रकाशन – Sec. 43

प्रारूप (draft) रिकॉर्ड प्रकाशित होते हैं
आपत्तियाँ आमंत्रित
सुधार किया जाता है


4. नया रिकॉर्ड ऑफ राइट्स तैयार करना – Sec. 45

सर्वेक्षण के बाद नया RoR तैयार किया जाता है।

प्रक्रिया:

  1. अधिसूचना जारी करना
  2. ड्राफ्ट रिकॉर्ड तैयार करना
  3. सार्वजनिक नोटिस आपत्तियाँ
  4. जांच और अंतिम रिकॉर्ड का प्रमाणीकरण
  5. अंतिम प्रकाशन

5. रिकॉर्ड का पुनरीक्षण – Sec. 46

भूमि रिकॉर्ड को समय-समय पर अपडेट किया जा सकता है ताकि

  • नए परिवर्तन
  • उत्तराधिकार
  • बंटवारे
  • बिक्री
  • कब्जे में बदलाव

सभी अभिलेखों में सही तरीके से परिलक्षित रहें।


6. निष्कर्ष (Conclusion)

गाँव अभिलेख, म्यूटेशन और सर्वेक्षण की पूरी व्यवस्था

  • भूमि स्वामित्व और कब्जे को स्पष्ट करती है
  • विवाद कम करती है
  • राजस्व प्रशासन को आधुनिक और पारदर्शी बनाती है
  • वास्तविक स्थिति को रिकॉर्ड में दिखाती है

PART-4

ग्राम पंचायत द्वारा भूमि एवं संपत्ति का प्रबंधन

(U.P. Panchayat Raj Act, 1947 + UPZA & LR Act, 1950 + U.P. Revenue Code, 2006)

ग्राम पंचायत ग्राम स्तर पर भूमि और संपत्तियों का प्रबंधन करती है।
इसके लिए तीन मुख्य कानून लागू होते हैं

  1. U.P. Panchayat Raj Act, 1947
  2. U.P. Zamindari Abolition & Land Reforms Act, 1950
  3. U.P. Revenue Code, 2006

इन कानूनों का उद्देश्य है

  • ग्राम समुदाय की भूमि की रक्षा
  • भूमि का उचित उपयोग
  • अवैध कब्जों की रोकथाम
  • गरीब भूमिहीन लोगों को भूमि उपलब्ध कराना

1. ग्राम पंचायत को भूमि-संपत्ति क्यों दी जाती है? (Legal Basis)

धारा 117 — UPZA & LR Act, 1950 के तहत राज्य सरकार कुछ प्रकार की सरकारी भूमि ग्राम पंचायत / ग्राम सभा को सौंप देती है।

यह भूमि गाँव के सामूहिक उपयोग और विकास के लिए होती है।


ग्राम पंचायत के पास कौन-कौन सी भूमि/संपत्ति होती है?

  1. आबादी स्थल (ग्राम आवासीय भूमि)
  2. चारागाह (Grazing Land)
  3. बंजर और परती भूमि
  4. तालाब, पोखरे, जलाशय
  5. क्रीड़ा स्थल, खेल मैदान
  6. श्मशान / कब्रिस्तान
  7. ग्राम मार्ग, पगडंडियाँ
  8. छोटे वन क्षेत्र (Minor Forest)
  9. सरकारी भूमि जो राज्य द्वारा पंचायत को सौंपी गई हो

2. भूमि प्रबंधन समिति (Land Management Committee – LMC)

जिसे भूमि प्रबंधक समिति (Bhumi Prabandhak Samiti) भी कहते हैं।

(a) गठन — Rule 115-A (UPZA & LR Rules)

हर ग्राम पंचायत में यह समिति स्वतः गठित होती है।

(b) संरचना (Composition)

  • अध्यक्षग्राम प्रधान
  • सदस्यग्राम पंचायत के 4–5 सदस्य
  • सचिवग्राम पंचायत सचिव या लेखपाल

(c) समिति की शक्तियाँ और कर्तव्य

1. ग्राम सभा भूमि का प्रबंधन

समिति Sec. 117 के अंतर्गत मिली भूमि का पूरा प्रबंधन करती है।

2. अवैध कब्जे हटाना

  • अवैध कब्जे की सूचना लेखपाल/BDO/SDO/Collector को देना
  • कब्जा हटाने के लिए कार्रवाई कराना

3. भूमि का पट्टा / लीज देना

भूमि निम्नलिखित को पट्टे पर दी जा सकती है:

  • भूमिहीन व्यक्ति
  • गरीब परिवार
  • महिलाओं को आवासीय स्थल
  • विद्यालय / सार्वजनिक स्थल

4. किराया/प्रीमियम की वसूली

पट्टों से प्राप्त सभी धनराशि गाँव कोष (Gaon Fund) में जमा होती है।

5. ग्राम संपत्तियों का रख-रखाव

  • तालाबों की सफाई
  • रास्तों की देखरेख
  • चारागाह की सुरक्षा

6. सरकारी आदेशों का पालन

राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश लागू करना।

(d) पर्यवेक्षण (Supervision)

  • SDO और Collector समिति पर नियंत्रण रखते हैं।
  • अवैध पट्टे रद्द करने का अधिकार भी Collector को है।

3. ग्राम कोष (Gaon Fund)

धारा 110 — U.P. Panchayat Raj Act, 1947

ग्राम पंचायत का मुख्य वित्तीय कोष है।

आय के स्रोत (Sources of Income)

  1. भूमि पट्टों से प्राप्त धन
  2. कर, शुल्क, लाइसेंस फीस
  3. राज्य सरकार से अनुदान
  4. दान स्वैच्छिक योगदान
  5. मेला/हाट की आय
  6. तालाब/मछलीपालन की लाइसेंस आय
  7. जुर्माना और दंड

व्यय (Uses of Gaon Fund)

  • सड़क, नाली, पेयजल
  • सार्वजनिक इमारतें
  • प्राथमिक विद्यालयों का रखरखाव
  • गरीबों के आवास
  • स्वास्थ्य स्वच्छता
  • तालाबों की मरम्मत
  • ग्राम विकास कार्य

ऑडिट (Audit)

  • BDO और जिला पंचायत राज विभाग द्वारा प्रतिवर्ष ऑडिट किया जाता है।

4. समेकित ग्राम कोष (Consolidated Gaon Fund)

Sec 111-A, U.P. Panchayat Raj Act

यह बड़ा कोष जिला स्तर पर बनता है, जिसमें सभी ग्राम कोष का धन एकीकृत होता है।

उद्देश्य:

  • गरीब पंचायतों की आर्थिक मदद
  • सामूहिक विकास योजनाएँ
  • आपदा राहत कार्य
  • निधि का समान वितरण

5. Collector की शक्तियाँ निगरानी

Collector के पास निम्नलिखित अधिकार होते हैं

  • अवैध कब्जे हटाना
  • अवैध पट्टे रद्द करना
  • ग्राम सभा भूमि पर अनियमितताओं पर कार्रवाई
  • ग्राम कोष के गलत उपयोग पर दंड

6. प्रमुख न्यायालयीन निर्णय (Case Law)

(1) State of U.P. v. Board of Revenue (AIR 1994 All 261)

ग्राम सभा भूमि का निजी उपयोग नहीं हो सकता।
अवैध कब्जा हटाना LMC की ज़िम्मेदारी है।

(2) Gaon Sabha v. Nathi (AIR 1997 SC 364)

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा
ग्राम सभा भूमि कीकानूनी स्वामीहै।
ग्राम पंचायत केवल प्रबंधन करती है।


निष्कर्ष (Conclusion)

ग्राम पंचायत द्वारा भूमि प्रबंधन

  • ग्राम स्तर पर स्वशासन (local self-governance)
  • भूमि संरक्षण
  • गरीबों को भूमि उपलब्ध कराने
  • सामुदायिक संसाधनों की रक्षा
  • विकास कार्यों की निरंतरता

को सुनिश्चित करता है।

यह व्यवस्था उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पारदर्शिता और प्रशासनिक दक्षता को मजबूत बनाती है।



PART-5

भूमि धारकों के वर्गभूस्वामी (Bhumidhar), असामी (Asami)

(UP Revenue Code, 2006 — Sections 64–74)

उत्तर प्रदेश में भूमि अधिकारों (Land Tenure System) को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

1. भूस्वामी (Bhumidhar) – हस्तांतरणीय अधिकारों सहित

2. भूस्वामीगैर-हस्तांतरणीय अधिकारों सहित

3. असामी (Asami)

सर्वोच्च श्रेणी हस्तांतरणीय भूस्वामी की है, जबकि असामी सबसे निम्न श्रेणी है।


धारा 64 — भूमि धारकों के वर्ग

कानून के अनुसार तीन श्रेणियाँ हैं:

  1. भूस्वामी (Bhumidhar) – हस्तांतरणीय अधिकारों सहित
  2. भूस्वामीगैर-हस्तांतरणीय अधिकारों सहित
  3. असामी (Asami)

1. Bhumidhar with Transferable Rights (हस्तांतरणीय भूस्वामी)

(Sections 65–69)

यह भूमि अधिकार का सबसे उच्च रूप है।
इस व्यक्ति को भूमि पर लगभग मालिक (owner) जैसा अधिकार प्राप्त होता है।

हस्तांतरणीय भूस्वामी बनने के आधार (Sec 65–66)

कोई व्यक्ति निम्न तरीकों से इस श्रेणी में आता है:

  1. 1950 के पुराने कानून के अनुसार पहले से भूस्वामी होना
  2. विलेख (Sale/Gift) के माध्यम से भूमि प्राप्त करना
  3. उत्तराधिकार में भूमि प्राप्त करना
  4. Collector के आदेश से इस कैटेगरी में परिवर्तित होना
  5. राज्य सरकार द्वारा आवंटित भूमि प्राप्त करना

भूस्वामी (हस्तांतरणीय) के अधिकार (Sec 67–68–75–79)

1. भूमि को बेचने का अधिकार (Sale)

2. भूमि उपहार (Gift) देने का अधिकार

3. भूमि बंधक (Mortgage) रखने का अधिकार

4. पट्टा/लीज देने का अधिकार

5. वसीयत लिखने का अधिकार (Will)

6. संपत्ति उत्तराधिकारियों को जाएगी

7. सुधार कार्यों पर स्वामित्व (कुएँ, पेड़, निर्माण)


भूस्वामी की जिम्मेदारियाँ (Liabilities – Sec 95)

  • भूमि राजस्व देना
  • भूमि का अनुचित उपयोग करना
  • सीलिंग कानून (Ceiling Act) का पालन

2. Bhumidhar with Non-Transferable Rights (गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी)

(Sections 70–71)
इस वर्ग में व्यक्ति भूमि का उपयोग कर सकता है, लेकिन उसे स्वतंत्र रूप से बेच या बंधक नहीं रख सकता।

गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी बनने के आधार

  1. पुराने कानून के तहत पूर्व भूस्वामी
  2. राज्य सरकार/ग्राम पंचायत द्वारा भूमि का पट्टा
  3. पुनर्वास या गरीबों की योजनाओं के तहत भूमि
  4. Collector द्वारा घोषित

इनके अधिकार

  1. भूमि पर कब्जा और खेती
  2. भूमि से फसल का अधिकार
  3. उत्तराधिकार का अधिकार (heirs)
  4. समय पूरा होने पर Collector की अनुमति से Transferable Bhumidhar में परिवर्तित होने का अधिकार (Sec 69)

इनकी सीमाएँ / प्रतिबंध

भूमि बेच नहीं सकते

भूमि बंधक नहीं रख सकते

बिना अनुमति पट्टा नहीं दे सकते

नियमों का उल्लंघन पर बेदखली (Sec 188)


3. Asami (असामी)

(Sections 72–74)
यह सबसे निम्न श्रेणी का भूमि धारक है।
इसका अधिकार केवल अस्थायी कब्जे तक सीमित है।

असामी कैसे बनते हैं?

  1. राज्य सरकार/ग्राम पंचायत से लीज पर भूमि लेना
  2. भूस्वामी की भूमि पर अस्थायी खेती
  3. ग्राम सभा की भूमि से अस्थायी आवंटन
  4. अवैध कब्जे को नियमित करने पर

असामी के अधिकार (Sec 73)

  1. कब्जा खेती
  2. फसल का अधिकार
  3. अस्थायी लीज अवधि पूरी होने तक संरक्षण
  4. भूमि की वैध सुधार का मुआवजा
  5. बेदखली से पहले सुनवाई का अधिकार

असामी की सीमाएँ

  • भूमि हस्तांतरित नहीं कर सकता
  • भूमि का बंधक नहीं बना सकता
  • लीज समाप्त होते ही भूमि वापस
  • नियमों का पालन अनिवार्य

तीनों वर्गों का तुलनात्मक सार (Comparative Table)

पक्ष

हस्तांतरणीय भूस्वामी

गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी

असामी

स्वामित्व

सर्वोच्च, मालिकाना

सीमित

अस्थायी

भूमि बेचना

संभव

नहीं

नहीं

भूमि बंधक

संभव

नहीं

नहीं

उत्तराधिकार

पूरा अधिकार

पूरा अधिकार

सामान्यतः नहीं

पट्टा देना

Collector की अनुमति से

बेदखली

नियम उल्लंघन पर

नियम उल्लंघन पर

लीज अवधि समाप्त

श्रेणी

Highest Tenure

Middle

Lowest


महत्वपूर्ण केस-लॉ

Bhopal Singh v. State of U.P. (1969)

हस्तांतरणीय भूस्वामी = मालिक जैसी शक्तियाँ।

Gaon Sabha v. Nathi (SC, 1997)

ग्राम सभा की भूमि निजी रूप से नहीं दी जा सकती।

Ram Awadh v. Board of Revenue (1982)

केवल रिकॉर्ड प्रविष्टि से भूस्वामी अधिकार नहीं बनते।


निष्कर्ष

UP में भूमि धारकों की तीन श्रेणियाँ

  • भूस्वामी (Transferable)
  • भूस्वामी (Non-transferable)
  • असामी

भूमि सुधार, सामाजिक न्याय, और गरीब कृषकों को संरक्षण देने के उद्देश्य से बनाई गई हैं।

यह प्रणाली

  • भूमि के समान वितरण
  • कमजोर वर्गों की सुरक्षा
  • भूमि प्रशासन में स्पष्टता

को सुनिश्चित करती है।

 

PART-6

भूमि का अंतरण, विनिमय, बंधक, पट्टा, विभाजन एवं घोषणा


1. भूमि का अंतरण (Transfer of Land) — Sec 75–83

भूमि का अंतरण मतलब भूमि का किसी अन्य व्यक्ति को कानूनी रूप से देना
जैसे Sale, Gift, Exchange, Will आदि।

कौन भूमि हस्तांतरित कर सकता है?

हस्तांतरणीय भूस्वामी (Bhumidhar with Transferable Rights)
वह अपनी भूमि किसी को भी बेच, दान, गिरवी रख या ट्रांसफर कर सकता है।

गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी

Collector की अनुमति के बिना भूमि नहीं बेच सकता।

असामी

किसी भी प्रकार का ट्रांसफर नहीं कर सकता।


2. बिक्री (Sale) — Sec 75

भूमि बेचने के लिए आवश्यक शर्तें

(1) विक्रेता का “Transferable Bhumidhar” होना

(2) बिक्री रजिस्टर्ड विलेख (Registered Sale Deed) द्वारा होनी चाहिए

(3) खरीदार अयोग्य हो (Sec 98 के तहत)

(4) SDM/तहसील में म्यूटेशन अनिवार्य

अवैध बिक्री

  • ग्राम सभा भूमि की बिक्री
  • Ceiling Act का उल्लंघन
  • बिना रजिस्ट्री
  • धोखे से की गई बिक्री

3. उपहार (Gift / Hiba) — Sec 76

भूस्वामी अपनी भूमि

  • रिश्तेदारों
  • बच्चों
  • पत्नी
  • किसी संस्था

को उपहार में दे सकता है।

उपहार की शर्तें:

  • रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड
  • म्यूटेशन अनिवार्य

4. बंधक (Mortgage) — Sec 82

भूस्वामी बैंक/सहकारी समिति/व्यक्ति के पास भूमि गिरवी रख सकता है।

बंधक के प्रकार

  1. Simple Mortgage
  2. Possessory Mortgage
  3. Usufructuary Mortgage

ग्राम सभा भूमि का बंधक प्रतिबंधित

(कानूनी अपराध माना जाएगा)


5. विनिमय (Exchange) — Sec 77

दो भूस्वामी आपस में अपनी भूमि बदल सकते हैं।

शर्तें

  • रजिस्टर्ड एक्सचेंज डीड
  • दोनों पक्षों की सहमति
  • Revenue Map में संशोधन

6. वसीयत (Will) — Sec 78

भूमि स्वामी मरने से पहले अपनी संपत्ति किसी भी व्यक्ति के नाम वसीयत कर सकता है।

  • Registered Will प्राथमिक मानी जाती है
  • उत्तराधिकार वसीयत के अनुसार तय होगा

7. पट्टा / लीज (Lease) — Sec 83

भूस्वामी अपनी भूमि लीज पर दे सकता है।

लीज की शर्तें

  • Written Lease Agreement
  • अवधि 1 से 10 वर्ष
  • किराया/रेंट तय
  • म्यूटेशन नहीं होता

ग्राम सभा भूमि की लीज केवल पंचायत दे सकती है।

भूस्वामी नहीं दे सकता।


8. भूमि का विभाजन (Partition) — Sec 89–95

दो या अधिक संयुक्त भूस्वामी अपनी भूमि का विभाजन करा सकते हैं।

विभाजन का आवेदन

SDM/तहसीलदार के समक्ष Sec 89 के अनुसार आवेदन।

प्रक्रिया

  1. नोटिस जारी
  2. आपत्तियाँ
  3. मापन/निरीक्षण
  4. हिस्से का नक्शा
  5. आदेश
  6. नए खसरा/खतौनी नंबर

विभाजन के बाद

  • प्रत्येक का हिस्सा स्वतंत्र भू-धारणा बन जाता है।
  • म्यूटेशन स्वतः होता है।

9. अधिकारों की घोषणा (Declaration of Rights) — Sec 80–81

राजस्व अधिकारी निम्न घोषणाएँ जारी कर सकता है:

  1. किसी को भूस्वामी घोषित करना
  2. असामी को भूस्वामी में परिवर्तित करना
  3. कब्जे की घोषणा
  4. अवैध कब्जे की घोषणा
  5. खेती करने के अधिकार की पुष्टि

10. प्रतिबंध (Restrictions on Transfer) — Sec 98–103

अनुसूचित जाति (SC) की भूमि

  • SC व्यक्ति अपनी भूमि केवल SC को बेच सकता है।
  • अन्य को बिक्री के लिए Collector की अनुमति आवश्यक।
    (यह नियम सामाजिक सुरक्षा के लिए है)

Ceiling के उल्लंघन पर भूमि का अंतरण अमान्य

Minor की भूमि की बिक्री के लिए Court की अनुमति

धोखे, दबाव, जालसाजी से किया गया ट्रांसफर शून्य (Void)


11. अवैध ट्रांसफर पर कार्रवाई — Sec 104–108

Collector निम्न आदेश दे सकता है:

  1. ट्रांसफर निरस्त (Cancel)
  2. भूमि वापस मूल स्वामी या ग्राम सभा को
  3. कब्जेदार का बेदखल करना
  4. जुर्माना लगाना
  5. राजस्व वसूली के रूप में वसूल करना

महत्वपूर्ण केस-लॉ

Ram Gopal vs State of UP (2003)

SC/ST भूमि गलत व्यक्ति को बेची गईबिक्री स्वतः शून्य।

Gaon Sabha vs Nathi (1997, SC)

ग्राम सभा भूमि का निजी हस्तांतरण अमान्य।

Suraj Lamp Case (SC 2012)

GPA/Agreement/Will से भूमि का स्वामित्व नहीं बनता
रजिस्ट्री आवश्यक है।


निष्कर्ष

U.P. Revenue Code में भूमि के

  • अंतरण
  • बंधक
  • विनिमय
  • पट्टा
  • विभाजन
  • और अधिकारों की घोषणा

के लिए स्पष्ट और आधुनिक नियम बनाए गए हैं।

इनसे भूमि स्वामित्व पारदर्शी बनता है और विवाद कम होते हैं।

PART-7

बेदखली एवं निष्कासन (Ejectment & Eviction)

(UP Revenue Code — Sections 109–122)

बेदखली का अर्थ है
किसी व्यक्ति को भूमि के कब्जे से कानूनी रूप से बाहर करना, जब

  • वह कब्जा अवैध हो,
  • अधिकार समाप्त हो गया हो,
  • या भूमि का उपयोग अनुचित हो।

U.P. Revenue Code में निष्कासन के स्पष्ट नियम हैं।


1. बेदखली के कारण (Grounds of Eviction)

धारा 109–110 महत्वपूर्ण हैं।

किसी व्यक्ति को निम्न स्थितियों में बेदखल किया जा सकता है:

1. अवैध कब्जा (Unauthorised Occupation) — Sec 110

जब कोई बिना अधिकार, अनुमति या पट्टे के भूमि पर कब्जा ले ले।
इसे अतिक्रमण (Encroachment) भी कहा जाता है।

2. पट्टा समाप्त होने पर (On Expiry of Lease)

लीज अवधि समाप्त होने पर कब्जा रखना अवैध माना जाएगा।

3. उपयोग शर्तों का उल्लंघन (Misuse of Land)

जैसे

  • कृषि भूमि पर बिना अनुमति भवन बनाना
  • ग्राम सभा भूमि पर व्यावसायिक उपयोग
  • पर्यावरण/सार्वजनिक उपयोग पर आघात

4. राजस्व बकाया पर (On Arrears of Land Revenue)

लंबे समय तक भूमि राजस्व देने पर।

5. असामी द्वारा नियम उल्लंघन (Sec 188)

असामी शर्तों का उल्लंघन करे तो बेदखल।

6. अवैध ट्रांसफर — (Sec 104–108)

अमान्य बिक्री / अवैध हस्तांतरण होने पर।


2. अवैध कब्जा (Encroachment) — Sec 111

अवैध कब्जेदार को कहा जाता है:

उक्त व्यक्ति जो बिना किसी अधिकार के भूमि पर कब्जा करे।

कार्रवाई का अधिकार

  • लेखपाल रिपोर्ट बना कर SDM/तहसीलदार को भेजता है।
  • SDM suo motu भी कार्रवाई कर सकता है।

नोटिस (Notice)

बेदखली से पहले 15–30 दिन का नोटिस अनिवार्य है।


3. बेदखली की प्रक्रिया (Procedure of Ejectment)

Step 1 — रिपोर्ट (लेखपाल की रिपोर्ट)

लेखपाल पंचनामा बनाकर कब्जे की वास्तविक स्थिति बताता है।

Step 2 — नोटिस (Sec 109)

अवैध कब्जेदार को कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) दिया जाता है।

Step 3 — सुनवाई

SDM/तहसीलदार द्वारा साक्ष्य और आपत्तियाँ सुनी जाती हैं।

Step 4 — आदेश

SDM निम्न आदेश दे सकता है:

  • बेदखली
  • जुर्माना
  • कब्जा हटवाना
  • भूमि की स्थिति ठीक करना
  • नुकसान की वसूली

Step 5 — Demarcation

सीमा पुनः निर्धारित होती है।

Step 6 — Police सहायता

आवश्यक होने पर SDM पुलिस बल उपलब्ध कराता है।


4. जुर्माना एवं दंड (Penalties)

धारा 111(2) के अनुसार:

दंड:

भूमि के वार्षिक मूल्य का 5 गुना तक जुर्माना।

अतिरिक्त दंड:

  • कब्जा जारी रखने पर प्रतिदिन जुर्माना
  • सरकारी खर्च की वसूली
  • मकान/निर्माण का हटाना

5. ग्राम सभा भूमि पर अवैध कब्जा

(सबसे सख्त प्रावधान)

SC Judgment: Gaon Sabha vs Nathi (1997)

ग्राम सभा भूमि पर कोई भी निजी कब्जा अवैध है।
बेदखली अनिवार्य है।

कार्रवाई

  • तत्काल नोटिस
  • 15 दिन में बेदखली
  • अतिक्रमण हटाने का खर्च कब्जेदार से वसूला जाता है।

Permanent Structures

गैरकानूनी निर्माण को हटाया जाएगा
मुआवजा नहीं दिया जाएगा।


6. पट्टा (Lease) समाप्त होने पर बेदखली

(Sec 112)

अगर

  • असामी
  • लीज धारक
  • ग्राम सभा पट्टा धारक
    लीज समाप्त होने के बाद भी भूमि छोड़े

बेदखली अनिवार्य है।


7. काश्तकार/असामी की बेदखली — Sec 188

निम्न स्थितियों में असामी बेदखल:

  1. किराया देना
  2. भूमि का उपयोग बदलना
  3. अवैध ट्रांसफर
  4. लीज शर्तों का उल्लंघन
  5. गम्भीर क्षति पहुँचाना

8. कब्जा वापस दिलाने की प्रक्रिया (Restoration of Possession)

(Sec 119–122)

यदि किसी को अवैध रूप से कब्जे से हटाया गया हो
SDM/तहसीलदार उसे कब्जा वापस दिलाता है।

आवेदन अवधि

60 दिन के भीतर आवेदन।

प्रक्रिया

  • जाँच
  • स्थल निरीक्षण
  • आदेश
  • पुलिस सहायता

9. अपील (Appeal)

(Sec 208)

SDM/तहसीलदार के आदेश पर:

अपीलकमीश्नर (Commissioner)

समय सीमा: 30 दिन

पुनरीक्षण → Board of Revenue

(कुछ मामलों में)


10. प्रमुख केस-लॉ (Important Case Law)

1. Gaon Sabha vs Nathi (SC, 1997)

ग्राम सभा भूमि पर कब्जाअनिवार्य बेदखली।

2. State of U.P. vs Board of Revenue (Allahabad HC)

अवैध कब्जेदार को संरक्षण नहीं।

3. Ram Gopal vs State of U.P.

SC/ST भूमि गलत खरीदार को बेची गईकब्जा वापस।

4. Sita Ram vs Gaon Sabha

ग्राम सभा भूमि पर बने पक्के निर्माण भी हटाए जा सकते हैं।


निष्कर्ष

UP Revenue Code भूमि कब्जे के संरक्षण के लिए एक मजबूत व्यवस्था प्रदान करता है।

इसका मुख्य उद्देश्य है:

  • अवैध कब्जों को हटाना
  • ग्राम सभा भूमि की रक्षा
  • पट्टा धारकों का अनुशासन
  • भूमि विवादों को कम करना
  • मूल भू-स्वामी को कब्जा वापस दिलाना

PART-8

राजस्व अधिकारी, उनकी शक्तियाँ, अपील, पुनरीक्षण एवं प्रक्रिया

(UP Revenue Code, 2006 — Sections 122 to 210)

इस भाग में यह बताया गया है कि

  • कौन-कौन से राजस्व अधिकारी होते हैं
  • उनके अधिकार और कर्तव्य क्या हैं
  • कौन-सा मामला किस अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आता है
  • अपील और पुनरीक्षण कैसे होते हैं
  • राजस्व प्रक्रिया (Revenue Procedure) कैसे चलती है

1. राजस्व अधिकारी (Revenue Officers)

UP Revenue Code की धारा 122 में राजस्व अधिकारियों की सूची दी गई है।

राजस्व अधिकारियों के पद (Hierarchy)

उच्च से निम्न क्रम:

  1. Board of Revenue
  2. Commissioner (कमिश्नर)
  3. Additional Commissioner
  4. Collector / District Magistrate (कलेक्टर/DM)
  5. Additional Collector
  6. Sub Divisional Officer (SDO) / Up-Jila Adhikari
  7. Tehsildar (तहसीलदार)
  8. Naib-Tehsildar
  9. Lekhpal (लेखपाल)

2. अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) — Sec 123–130

1. कमिश्नर (Commissioner)

  • पूरे मंडल का प्रमुख
  • अपीलें सुनते हैं
  • बड़े विवादों और नीतिगत मामलों में निर्णय देते हैं
  • राजस्व अधिकारियों की निगरानी

2. कलेक्टर (Collector) / DM

  • पूरे जिले का राजस्व प्रमुख
  • जमीनों का प्रबंधन
  • भुगतान वसूली
  • अवैध कब्जे हटाना
  • ग्राम सभा भूमि की सुरक्षा
  • म्यूटेशन/बंटवारे पर पर्यवेक्षण

3. SDO / उपजिलाधिकारी

  • तहसीलों के प्रभारी
  • सीमा विवाद
  • कब्जा बहाली
  • बेदखली
  • बंटवारा (Partition)
  • म्यूटेशन के विवाद

4. तहसीलदार

  • फील्ड स्तर पर सभी राजस्व कार्य
  • खतौनी/खसरा
  • राजस्व वसूली
  • रिपोर्टिंग

5. लेखपाल

  • सबसे महत्वपूर्ण जमीनी अधिकारी
  • भूमि मापन
  • कब्जे की रिपोर्ट
  • सीमांकन
  • खसरा/खतौनी का रख-रखाव

3. राजस्व न्यायालय (Revenue Courts) — Sec 131–133

धारा 131 राजस्व न्यायालयों को परिभाषित करती है:

अधिकारी

न्यायालय का स्तर

Commissioner

प्रथम अपीलीय न्यायालय

Collector

पुनरीक्षण अधिकार

SDO

प्राथमिक न्यायालय

Tehsildar

सीमित अधिकार वाले न्यायालय

कौन-सा विवाद राजस्व न्यायालय सुनेगा?

यह Schedule-1 में विशेष रूप से दिया गया है।

उदाहरण:

  • सीमा विवाद
  • म्यूटेशन
  • कब्जा बहाली
  • बेदखली
  • ग्राम सभा भूमि
  • भूस्वामी अधिकार

4. अपीलें (Appeals) — Sec 207–209

प्रथम अपील — Sec 207

अगर SDO/तहसीलदार ने आदेश दिया हो
Commissioner के पास अपील।

द्वितीय अपील (Second Appeal)

कुछ मामलों में
→ Commissioner के आदेश के विरुद्ध
Board of Revenue में अपील।

समय सीमा

30 दिन (सामान्य नियम)

अपील में क्या-क्या हो सकता है?

  • आदेश निरस्त
  • आदेश में संशोधन
  • नया आदेश
  • पुनः जाँच (Remand)

5. पुनरीक्षण (Revision) — Sec 210

पुनरीक्षण = आदेश की वैधता की गहन जांच।

कौन पुनरीक्षण कर सकता है?

  1. Board of Revenue
  2. Commissioner
  3. Collector

कब?

  • यदि आदेश में कानूनी त्रुटि हो
  • अधिकारी ने अधिकार का दुरुपयोग किया हो
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन हो

पुनरीक्षण का प्रभाव

  • आदेश रोका जा सकता है
  • आदेश रद्द या संशोधित हो सकता है

6. अंतरिम आदेश (Interim Orders) — Sec 202

अदालत आवश्यक होने पर

  • स्टे ऑर्डर (Stay)
  • अंतरिम कब्जा
  • अंतरिम प्रतिबंध

जारी कर सकती है।


7. सुनवाई की प्रक्रिया (Revenue Procedure) — Sec 193–201

राजस्व न्यायालय सरल और त्वरित प्रक्रिया अपनाता है।

Summons/Notice

  • साधारण नोटिस
  • रजिस्टर्ड डाक
  • पब्लिक नोटिस भी दिया जा सकता है

साक्ष्य (Evidence)

  • दस्तावेज़
  • नक्शा/मापन रिपोर्ट
  • लेखपाल की रिपोर्ट
  • गवाह

त्वरित निर्णय

कानून कहता है कि राजस्व विवादों को समयबद्ध तरीके से निपटाया जाए।


8. दंड और जुर्माना (Penalty Powers)

राजस्व अधिकारी निम्न दंड दे सकते हैं:

भुगतान करने पर

  • वसूली (Recovery)
  • कुर्की (Attachment)
  • नीलामी (Auction)

आदेश मानने पर

  • जुर्माना
  • कब्जे का हटवाना
  • अवरुद्ध निर्माण का हटाना

9. सिविल न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं (Bar of Civil Court) — Sec 206

बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान:

जिन मामलों पर राजस्व अधिकारी निर्णय दे सकते हैं,
उन मामलों को सिविल कोर्ट नहीं सुनेगी।

उदाहरण:

  • सीमा विवाद
  • म्यूटेशन
  • कब्जा बहाली
  • बेदखली
  • ग्राम सभा भूमि

ये सब केवल राजस्व न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।


महत्वपूर्ण केस-लॉ

Munni Devi v. Board of Revenue (Allahabad HC)

राजस्व विवाद में सिविल कोर्ट का दखल वर्जित।

State of UP v. Ram Swarup

SDO/Tehsildar की रिपोर्ट को प्राथमिक माना गया।

Kailash Nath v. Gaon Sabha

ग्राम सभा भूमि के मामलों में राजस्व अधिकारियों के आदेश सर्वोच्च।


निष्कर्ष

U.P. Revenue Code में राजस्व अधिकारियों की एक मजबूत प्रणाली बनाई गई है:

  • स्पष्ट अधिकार क्षेत्र
  • त्वरित प्रक्रिया
  • अपील पुनरीक्षण की व्यवस्था
  • सिविल कोर्ट से सुरक्षा
  • ग्राम सभा भूमि और भूस्वामी अधिकारों की रक्षा

इससे भूमि विवाद कम होते हैं और प्रशासनिक कार्य व्यवस्थित रूप से चलते हैं।

PART-9

भूमि राजस्व : निर्धारण, मूल्यांकन, वसूली और वसूली की प्रक्रिया

(Sections 211–255)

भूमि राजस्व (Land Revenue) गाँव एवं राज्य के राजस्व प्रशासन का मुख्य आर्थिक आधार है।
इस भाग में बताया गया है:

  • भूमि राजस्व कैसे तय होता है?
  • कौन-कौन इसे चुकाने के लिए जिम्मेदार है?
  • वसूली कैसे की जाती है?
  • देने पर क्या दंड है?

1. भूमि राजस्व क्या है? (What is Land Revenue)

Sec 211 के अनुसार

भूमि राजस्व वह कर है जो सरकार भूमि पर उसके वार्षिक मूल्य के आधार पर लगाती है।

इसमें शामिल हैं:

  • भूमि कर
  • जल कर
  • सेस / उपकर
  • विकास शुल्क

2. भूमि राजस्व कौन देगा? (Sec 212)

भूमि राजस्व देने के लिए निम्न जिम्मेदार हैं:

1. हस्तांतरणीय भूस्वामी

2. गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी

3. असामी (लीज धारक)

4. ग्राम सभा/ग्राम पंचायत (अपनी संपत्ति पर)


3. भूमि का मूल्यांकन (Assessment) — Sec 213–220

राजस्व अधिकारी (Collector) भूमि कावार्षिक मूल्य (Annual Value)” तय करता है जिसके आधार पर कर लगता है।

मूल्यांकन के तत्व:

  1. भूमि की उपजाऊ शक्ति
  2. सिंचाई सुविधा
  3. भूमि का प्रकार
  4. फसल उत्पादन क्षमता
  5. बाजार मूल्य
  6. सरकारी दरें

मूल्यांकन का चक्र:

हर 5 वर्ष में मूल्यांकन (Revision of Assessment) किया जा सकता है।
आवश्यक होने पर यह 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।


4. राजस्व की वसूली (Recovery of Land Revenue)

(Sec 221–239)

यह पूरा भाग बहुत महत्वपूर्ण है।

भूमि राजस्व की वसूली की प्रक्रिया:

Step 1 — नोटिस (Notice) — Sec 224

भुगतान होने पर तहसीलदार नोटिस भेजता है
15–30 दिन की अवधि देता है।

Step 2 — अरियर (Arrears) घोषित — Sec 225

समय पर भुगतान करने पर, राशि “Arrears of Land Revenue” बन जाती है।

Step 3 — वसूली अधिकारी नियुक्त

SDM/तहसीलदार वसूली अधिकारी नियुक्त करता है।

Step 4 — वसूली की विधियाँ (Modes of Recovery)

धारा 226–239 में निम्न विधियाँ दी गई हैं:


5. वसूली की विधियाँ (Modes of Recovery)

(1) चल संपत्ति की कुर्की (Attachment of Movable Property)

  • पशु
  • अनाज
  • उपकरण
  • वाहन
  • सोना/चांदी

(2) अचल संपत्ति की कुर्की और नीलामी

  • भूमि
  • मकान
  • दुकान

(3) फसलों की कुर्की (Attachment of Crops)

फसल जब्त कर राजस्व वसूला जाता है।

(4) बकायेदार की वेतन/आय से कटौती

सरकारी नौकरी / निजी वेतन से राशि काटी जा सकती है।

(5) बैंक खाते की सीजर (Account Seizure)

बैंक खाते से राशि जब्त की जा सकती है।

(6) बंधक संपत्ति का निस्तारण

मॉर्गेज की गई भूमि/संपत्ति कुर्क हो सकती है।

(7) गिरफ्तारी वारंट (बहुत दुर्लभ)

केवल लगातार अवहेलना पर।


6. किस्तें (Instalments) — Sec 240

बकाया राजस्व को कलेक्टर किस्तों में बाँट सकता है।

शर्तें:

  • वास्तविक कठिनाई
  • ऋतु आधारित असफलता
  • दैवीय आपदा (Flood/Drought)

7. दंड और ब्याज (Penalty & Interest) — Sec 241

विलंब पर ब्याज

सरकारी नियमानुसार वार्षिक ब्याज लगता है।

दंड

  • अतिरिक्त 10% से 25% तक दंड
  • बार-बार भरने पर दोगुना दंड

8. राजस्व वसूली प्रमाणपत्र (RRC) — Sec 243

यदि व्यक्ति अन्य सरकारी विभागों का ऋणी है
→ RRC बनाकर राजस्व विभाग वसूली करेगा।

इसका उपयोग:

  • बैंक लोन
  • बिजली बिल
  • कृषि ऋण
  • सरकारी हानि

9. भूमि कब्जे की सुरक्षा (Sec 245–248)

राजस्व बकाया के आधार पर

गैर-हस्तांतरणीय भूस्वामी की भूमि

कुर्क नहीं की जा सकती।

SC/ST भूमि

केवल Collector की अनुमति से ही वसूली।

ग्राम सभा भूमि

नीलामी नहीं की जा सकती।


10. विशेष प्रावधान (Special Provisions)

दैवीय आपदा (Flood, Drought) — Sec 249

राजस्व माफ/स्थगित/कम किया जा सकता है।

आपातकालीन राहत — Sec 250

कलेक्टर संकटग्रस्त क्षेत्रों में राजस्व वसूली रोक सकता है।

सैन्य सेवा — Sec 251

सेना/पुलिस सेवा में तैनात लोगों को विशेष राहत।


महत्वपूर्ण केस-लॉ

State of U.P. vs Ram Chandra (Allahabad HC)

राजस्व वसूली में नोटिस अनिवार्य है।

Gopal Singh vs Collector (2011)

कुर्की तभी जब भुगतान करने की स्पष्ट मंशा हो।

Deen Dayal vs State of U.P.

ग्राम सभा भूमि की नीलामी अमान्य।


निष्कर्ष

भूमि राजस्व प्रणाली

  • भूमि मूल्यांकन
  • राजस्व निर्धारण
  • वसूली
  • कुर्की और नीलामी
  • दंड
  • राहत

को नियमित करती है।
यह राज्य के राजस्व प्रशासन को सुचारू, पारदर्शी और अनुशासित बनाती है।

PART-10

विविध प्रावधान (Miscellaneous), अपराध-दंड, समय-सीमा, सिविल न्यायालय का निषेध, नियम बनाने की शक्ति


1. अपराध एवं दंड (Offences & Penalties) — Sec 256–260

UP Revenue Code में कुछ विशेष कार्यों कोअपराधमाना गया है:

(1) सीमाचिह्न नष्ट करना — Sec 256

कोई व्यक्ति यदि

  • सीमाचिह्न (Boundary Mark) हटाए,
  • तोड़े,
  • बदल दे,

तो उसे दंडित किया जा सकता है।

दंड:

  • ₹1,000 तक जुर्माना (SDO द्वारा)
  • IPC के अंतर्गत अलग से कार्रवाई (धारा 425/441)

(2) गलत बयान/झूठी जानकारी — Sec 257

राजस्व अधिकारी के सामने गलत सूचना देना अपराध है।

दंड:

  • 6 माह तक कारावास
  • या जुर्माना
  • या दोनों

(3) राजस्व अधिकारी का आदेश मानना — Sec 258

कोई व्यक्ति यदि SDM/तहसीलदार/कलेक्टर के आदेश का उल्लंघन करे

दंड:

  • ₹500–₹5,000 तक जुर्माना
  • लगातार उल्लंघन पर दैनिक जुर्माना

(4) सर्वेक्षण कार्य में बाधा — Sec 259

जमीन के सर्वे (Survey) या मापन कार्य में रोक लगाना अपराध।

दंड:

  • 3 माह तक कारावास
  • या जुर्माना

(5) ग्राम सभा भूमि पर कब्जा — Sec 260

सबसे गंभीर अपराध
ग्राम सभा / पंचायत भूमि पर अवैध कब्जा करना।

दंड:

  • बेदखली
  • कब्जा हटाने का खर्च उसकी जेब से
  • ₹10,000 तक जुर्माना
  • पक्का निर्माण होने पर भी कोई मुआवजा नहीं

2. समय-सीमा (Limitation) — Sec 261–265

राजस्व मामलों में समय सीमा तय है:

कार्यवाही

समय सीमा

म्यूटेशन

90 दिन

कब्जा बहाली आवेदन

60 दिन

अपील

30 दिन

पुनरीक्षण

90 दिन

विभाजन

कोई सीमित अवधि नहीं

देरी होने पर

राजस्व अधिकारीपर्याप्त कारणहोने पर देरी माफ कर सकते हैं।


3. सिविल न्यायालय का निषेध (Bar of Civil Court) — Sec 266

यह अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है:

जिन मामलों का निपटान राजस्व अधिकारी कर सकते हैं,
उन पर सिविल कोर्ट सुनवाई नहीं करेगी।

उदाहरण:

  • सीमा विवाद
  • कब्जा बहाली
  • बेदखली
  • ग्राम सभा भूमि
  • म्यूटेशन
  • भूस्वामी अधिकार

राजस्व न्यायालय का निर्णय अंतिम माना जाएगा।


4. सरकारी कार्य की सुरक्षा — Sec 267

राजस्व अधिकारी, लेखपाल, नायब-तहसीलदार आदि
आधिकारिक कर्तव्य में किए गए कार्यों के लिए संरक्षित हैं।

उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक


5. राजस्व वाद में प्रतिनिधित्व (Representation) — Sec 268

राजस्व वाद में

  • पक्षकार स्वयं
  • वकील
  • या अधिकृत एजेंट

हाजिर हो सकता है।

सरकारी मामलों में सरकारी अधिवक्ता (GA) या तहसील प्रतिनिधि उपस्थित होता है।


6. दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता (Presumption of Records) — Sec 269

राजस्व रिकॉर्ड

  • खतौनी
  • खसरा
  • नक्शा
  • लेखपाल रिपोर्ट

प्रमाणिक (Authentic) माने जाते हैं, जब तक कोई उन्हें गलत सिद्ध करे।


7. राजस्व वसूली की प्रतिरक्षा — Sec 270

राजस्व अधिकारी द्वारा की गई वसूली

  • तब तक वैध मानी जाएगी
  • जब तक कोई कानूनी त्रुटि सिद्ध कर दे

8. नियम बनाने की शक्ति (Rule-making Powers) — Sec 271–275

राज्य सरकार को संहिता के अंतर्गत Rules (नियम) बनाने का पूरा अधिकार है।

सरकार निम्न विषयों पर नियम बना सकती है:

  1. राजस्व अधिकारी का कार्य विभाजन
  2. खतौनी/खसरा का प्रारूप
  3. सर्वेक्षण और सीमांकन
  4. म्यूटेशन प्रक्रिया
  5. बेदखली की प्रक्रिया
  6. भूमि मूल्यांकन
  7. ग्राम सभा भूमि प्रबंधन
  8. दंड प्रक्रिया
  9. अपील/पुनरीक्षण प्रक्रिया
  10. ऑनलाइन/डिजिटल रिकॉर्ड सिस्टम

महत्वपूर्ण केस-लॉ (Case Law)

State of UP vs Munni Devi (Allahabad HC)

राजस्व मामलों में सिविल कोर्ट का हस्तक्षेप नहीं।

Gaon Sabha vs Nathi (SC, 1997)

ग्राम सभा भूमि पर अवैध कब्जाबेदखली अनिवार्य।

Ramadhar Singh vs State of UP

राजस्व रिकॉर्ड को विशेष महत्व।

Board of Revenue vs Brij Lal

राजस्व अधिकारी कानून से बाहर निर्णय नहीं दे सकते।


अंतिम निष्कर्ष (Final Conclusion)

UP Revenue Code एक सम्पूर्ण भूमि कानून है जो

  • भूमि अधिकार
  • ग्राम सभा भूमि
  • सीमांकन
  • म्यूटेशन
  • कब्जा
  • बेदखली
  • राजस्व वसूली
  • अपीलें
  • दंड
  • और राजस्व न्यायालय

सभी को एकीकृत रूप में नियंत्रित करता है।

इससे भूमि प्रशासन
संगठित, पारदर्शी और विवाद-मुक्त बनता है।

 

ANG GYAN

Author & Editor

Ashok Jha,FACULTY.

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